राजेंद्र रंगीला को गुरु घासीदास चेतना में मिला छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा सम्मान
ज़ोहेब खान…….रायपुर। छत्तीसगढ़ के आरंग क्षेत्र के छोटे से ग्राम कुटेशर में जन्मे राजेंद्र रंगीला को उनके लोक कलाओं और सामाजिक सेवाओं के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने गुरु घासीदास सम्मान से नवाज़ा है। यह राज्य का सबसे बड़ा सम्मान है, जिसे उन्होंने अपने उत्कृष्ट कार्यों और समर्पण से प्राप्त किया है।
राजेंद्र रंगीला ने महज 9 वर्ष की उम्र में गुरु घासीदास बाबा के गीतों की रचना और गायन की शुरुआत की। अपने छोटे भाई के साथ पंथी टीम बनाकर, उन्होंने छत्तीसगढ़ के गाँव-गाँव में गुरु घासीदास के संदेश को फैलाने का अनूठा कार्य किया। रायपुर के तेलीबांधा में उन्होंने एक बड़ा सामाजिक संगठन खड़ा किया, जो आज भी गुरु घासीदास के उपदेशों को जन-जन तक पहुँचाने का काम कर रहा है।
बाराडेरा धाम में वार्षिक मेले में उनकी सक्रिय सहभागिता ने उन्हें छत्तीसगढ़ के हर कोने तक प्रसिद्ध किया। उनकी लोक कला एवं मानव कल्याण सेवा समिति गरीब बच्चों की शिक्षा और निर्धन कन्याओं के विवाह का खर्च उठाकर समाज के लिए अनुकरणीय कार्य कर रही है।
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राजेंद्र रंगीला के 15,000 से अधिक लोकगीत आज भी विभिन्न माध्यमों से सुने और सराहे जाते हैं। उनकी 40 सदस्यों की राजेंद्र रंगीला लोकरंग टीम भारत के विभिन्न राज्यों में छत्तीसगढ़ की संस्कृति का प्रचार-प्रसार कर रही है।
छत्तीसगढ़ के लोक कला, संस्कृति, और सामाजिक सेवा के क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए, उन्हें यह सम्मान प्रदान किया गया है, जिससे पूरे राज्य में उनकी ख्याति और मान-सम्मान में वृद्धि हुई है।