छत्तीसगढ़

तेलंगाना में कांग्रेस की प्रचंड जीत ने सबको चौंकाया, क्यों नहीं चला MP, छत्तीसगढ़, राजस्थान में जादू

तेलंगाना ने कांग्रेस की इज्जत बचा ली, यहां केसीआर की बीआरएस को पार्टी बड़े अंतर से हरा दिया है। लेकिन बाकी तीनों प्रदेशों में पार्टी को बड़ी हार का सामना करना पड़ रहा है। न तो राजस्थान में गहलोत का जादू चला और न ही मध्य प्रदेश में कमलनाथ कुछ कर पाए। सबसे चौंकाने वाला नतीजा छत्तीसगढ़ का रहा। यहां तो भूपेश बघेल सबसे मजबूत माने जा रहे थे, लेकिन जनता ने यहां भी कांग्रेस के साथ खेला कर दिया।

रविवार को जिन चार प्रदेशों के चुनाव परिणाम जारी हुए, उनमें से तीन प्रदेशों में कांग्रेस का सीधा मुकाबला भाजपा से था। खास बात ये है कि तीनों ही राज्यों में कांग्रेस और भाजपा के बीच कांटे का मुकाबला माना जा रहा था, लेकिन चुनाव परिणाम यह बात ही गलत साबित होती दिखी। तीनों ही राज्यों में भाजपा प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाते नजर आ रही है। कांग्रेस के लिए सिर्फ तेलंगाना ही अच्छी खबर बनकर आया, जहां के रुझानों ने ये स्पष्ट कर दिया है कि कांग्रेस यहां सरकार बनाएगी। ऐसे में लोगों के जेहन में एक ही सवाल है कि आखिर आखिर कांग्रेस ने तेलंगाना में ऐसा क्या किया जो मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में नहीं कर पाई।

तेलंगाना में कांग्रेस ने चुनाव की मजबूत तैयारी की थी। यहां चुनाव का ऐलान होने से एक साल पहले से ही पार्टी ने चुनाव प्रचार शुरू कर दिया था। खास बात ये थी कि यहां जो भी चुनावी गतिविधि हो रही थी उसकी कमान सीधे कांग्रेस आलकमान ने अपने हाथ में रखी थी। दरअसल तेलंगाना में पिछले चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ 6 सीटें मिली थीं, ऐसे में पार्टी इस चुनाव में कोई भी चूक नहीं करना चाहती थी। इसीलिए राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ने भी कर्नाटक की तरह तेलंगाना में भी लंबा वक्त गुजारा था।

भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी और कांग्रेस के महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कांग्रेस के नेताओं से मुलाकात कर उन्हें एकजुटता का संदेश दिया। इसके बाद मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी, केसी वेणुगोपाल और पीसीसी अध्यक्ष रेवंत रेड्डी ने दिल्ली में बैठक कर चुनावी रणनीति फाइनल की ताकि तेलंगाना की सत्ता पर कब्जा किया जा सके। भारत जोड़ो यात्रा के अलावा भी प्रदेश में अन्य यात्राएं प्लान की गईं, ताकि जनता तक पहुंचा जा सके. कांग्रेस ने जनता की भावना को समझा और प्रदेश में सर्वे कर सीएम चंद्रशेखर राव को निशाना बनाया। कांग्रेस ने इसके लिए कई चुनावी गानों का भी सहारा लिया।

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की चुनावी तैयारी उस तरह नहीं हुई, जिस तरह होनी चाहिए थी। चुनाव प्रचार में भी ये नजर आया। पार्टी के नेताओं ने खास फोकस तेलंगाना, मध्य प्रदेश और राजस्थान पर रखा। इसका कारण सीएम भूपेश बघेल थे, शायद कांग्रेस आलाकमान के मन में उनकी जीत को लेकर कोई शंका नहीं थी, इसीलिए कांग्रेस ने यहां विशेष दिलचस्पी नहीं दिखाई। इससे इतर भाजपा यहां साइलेंट कैपेनिंग से आगे बढ़ती रही। चुनाव प्रचार के अंतिम दिनों में पीएम मोदी ने भी यहां ताबड़तोड़ रैलियां कीं और कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया।

आपसी लड़ाई बनी हार का कारण

राजस्थान में कांग्रेस की आपसी लड़ाई पार्टी को ले डूबी, यहां सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच सीएम की कुर्सी की खींचतान ही पार्टी के इस हश्र की प्रमुख वजह मानी जा रही है। राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि पार्टी की गुटबाजी और बागी नेताओं ने भी कहीं न कहीं कांग्रेस का खेल बिगाड़ा है। पार्टी का चुनावी कैंपेन भी यहां उतना दमदार नहीं था, क्योंकि यहां पार्टी ने पूरी तरह से गहलोत पर भरोसा कर उन्हीं के हिसाब से चुनाव प्रचार किया। टिकट बंटवारे में भी गहलोत की ही चली, जो कांग्रेस के हार की वजह बन गई।

तेलंगाना में जो कांग्रेस ने किया ठीक वैसा ही काम मध्य प्रदेश में भाजपा ने किया। यहां भाजपा की ओर से एक साल पहले से ही चुनावी तैयारी शुरू कर दी गई थी, लेकिन कांग्रेस ने ऐसा नहीं किया। इसकी वजह कहीं न कही कमलनाथ रहे। इसके अलावा गठबंधन दलों की नाराजगी भी कांग्रेस के लिए नुकसान का कारण बनी। यहां अपनी जीत निश्चित मान रहे कमलनाथ ने चुनाव प्रचार के दौरान इंडिया गठबंधन के सहयोगियों को खूब खरी-खरी सुनाईं। इसका परिणाम ये रहा है कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपने मजबूत उम्मीदवार उतारे और उनके पक्ष में कांग्रेस के खिलाफ के चुनाव प्रचार भी किया। इधर भाजपा लगातार हिंदुत्व कार्ड खेलती रही और सोशल इंजीनियरिंग को भी उसने अपना हथियार बनाया। नतीजतन लड़ाई में कांग्रेस लगातार पिछड़ती रही।

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