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शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास उत्तराखंड प्रांत का दो दिवसीय प्रांतीय शैक्षिक कार्यशाला सह अभ्यास वर्ग देहरादून में प्रारंभ।

क्राइम छत्तीसगढ़ न्यूज़। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास उत्तराखंड प्रांत एवं देवभूमि उत्तराखंड विश्वविद्यालय देहरादून देहरादून के भारतीय ज्ञान परंपरा उत्कृष्ट केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय शैक्षिक कार्यशाला का शुभारंभ शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के क्षेत्रीय संयोजक जगराम, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उत्तराखंड प्रांत के प्रांत कार्यवाह दिनेश सेमवाल, न्यास के प्रांत संरक्षक प्रो. नीरज तिवारी, प्रांत अध्यक्ष प्रो. विनोद कुमार एवं प्रदेश संयोजक डॉ अशोक कुमार मैन्दोला ने मां सरस्वती के चित्र के सम्मुख संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर किया। उद्घाटन सत्र के कार्यक्रम में देवभूमि उत्तराखंड विश्वविद्यालय की तरफ से अतिथियों का स्वागत सम्मान किया गया प्रांत संयोजक डॉ अशोक कुमार मैन्दोला ने शिक्षा संस्कृति उद्यान न्यास के विकास यात्रा के क्रम में अवगत कराया कि भारतीय शिक्षा प्रणाली में एन.सी.आर.टी की पुस्तकों में लगभग 75 आपत्तिजनक विषयों को लेकर के सड़क से लेकर न्यायपालिका तक की यात्रा की और आज हमें एनसीईआरटी की पुस्तक में परिवर्तन देखने को मिल रहा है उन्होंने कहा कि हमें समस्या पर नहीं समाधान की चर्चा करनी होगी उन्होंने कहा कि न्यास शिक्षा बचाओ आंदोलन के तहत विभिन्न प्रकार की गतिविधियों का आयोजन कर समाज व राष्ट्र के हित में नित नए कार्यों को करने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने चरित्र निर्माण से व्यक्ति निर्माण और उसके बाद राष्ट्र निर्माण की परिकल्पना को दोहराया।

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मुख्य वक्ता के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत कार्यवाह डॉ.दिनेश सेमवाल ने कहा कि भारत की शिक्षा प्रणाली भारत केद्रिंत होनी ही चाहिए भारतीय शिक्षा व्यवस्था को नष्ट भ्रष्ठ करने के कई प्रयास किए गए लेकिन भारत की सभ्यता संस्कृति इतनी सुदृढ़ है कि उसे कोई भी नष्ट नहीं कर सका उन्होंने भारतीय ज्ञान परंपरा को आज की महत्वपूर्ण आवश्यकता बताते हुए तत्काल शिक्षा प्रणाली में सभी स्तरों पर परिवर्तन लाने के लिए प्रयास करने होंगे । शुभारंभ कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए देवभूमि उत्तराखंड विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ प्रीति कोठियाल ने कहा कि शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास जिस प्रकार से भारतीय शिक्षा प्रणाली में भारतीय जनता को लेकर जो कार्य कर रही है वह निश्चित रूप से अद्वितीय एवं अनुपम है उन्होंने कहा कि न्यास के कार्यक्रमों में विश्वविद्यालय हर स्तर पर सहयोग करने के लिए एवं मंच साझा करने के लिए संकल्प बढ़ाया है उन्होंने अपने संबोधन ने कहा कि शिक्षा ही संस्कारों की आधारशिला है। उन्होंने कहा कि बच्चों के बाल्यावस्था में नैतिक संस्कारों एवं मूल्य परक शिक्षा आज की आवश्यकता महसूस की जा रही है आज नैतिक मूल्यों का पतन शिक्षा में दिखाई दे रहा है जो चिंता का विषय है,इसके लिए चरित्र निर्माण पर बल दिया जाना चाहिए।

प्रथम सत्र में न्यास के क्षेत्रीय संयोजक जगराम ने कहा कि शिक्षा समाज परिवर्तन के लिए आवश्यक शिक्षा से ही व्यक्ति के सर्वांगीण विकास की परिकल्पना की जा सकती है आर्थिक एवं सामाजिक विकास भी शिक्षा की ही देन है आज शिक्षा के माध्यम से भारतीयों में भारतीय ज्ञान परंपरा की अलख जागने की आवश्यकता है।

द्वितीय सत्र में न्यास के प्रांत संरक्षक प्रो. नीरज तिवारी ने कार्यकर्ता विकास एवं कार्यक्रम से कार्यकर्ता व कार्य पद्धति के विषय को लेकर संबोधित किया उन्होंने कहा कि प्रत्येक शिक्षाविद् वह शिक्षा क्षेत्र में कार्य करने वाले लोगों की महती भूमिका आज की वर्तमान शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन को लेकर है। शिक्षा समाज का दर्पण होता है इसलिए शिक्षक, शिक्षा क्षेत्र में कार्य करने वाले लोगों की जिम्मेदारी अत्यधिक हो जाती है।

तृतीय सत्र में पांच परिवर्तन से समाज परिवर्तन विषय को लेकर डॉक्टर नवीन चंद्र पंत ने कहा परिवार प्रबोधन, पर्यावरण, समाज,सामाजिक समरसता, नागरिक कर्तव्य बोध से ही राष्ट्रीय की सम्यक परिकल्पना की जा सकती है आज एकल परिवार प्रथा को टूटने की और अग्रसर हो रहा है भारतीय परिवार व्यवस्था समर्पण, विनम्रता, संतोष, मितव्ययिता, सम्यक दृष्टि, आज्ञा पालन, स्नेह, सेवा,सहभागिता, एकात्मानूभूति, विश्व बंधुत्व की भावनाओं को लेकर चलती थी आज कहीं विलुप्त से होती दिखाई दे रही है जो समाज व राष्ट्र के लिए चिंता का विषय है क्योंकि परिवार राष्ट्र का मूल आधार है परिवार से ही संस्कारों की गंगा बहाई जा सकती है इसलिए परिवारों को बचाना उसके साथ ही पर्यावरण को बचाना सम्राट समाज की कल्पना एवं नागरिक कर्तव्यों का सम्यक या पालन करना यह प्रत्येक राष्ट्र के नागरिक के लिए आवश्यक है जिससे सशक्त भारत समर्थ भारत बन सके। चतुर्थ सत्र में डॉक्टर अनुज शर्मा ने कार्यकर्ता विकास में प्रवास की भूमिका पर अपने विचार व्यक्त किया उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा को लेकर के भारतीय शिक्षकों शिक्षाविदों को एक दूसरे स्थान पर जाकर भारत की परंपरा एवं संस्कृति के साथ ही भारत के प्राचीन ज्ञान वैभव को आम जनमानस तक पहुंचाने के लिए एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र तक जाना होगा जिससे हम भारतीय भौगोलिक एवं सामाजिक ज्ञान से भी पारित हो सकेंगे। इस कार्यक्रम में प्रदेश भर के विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों, विद्यालयों के शिक्षक,शिक्षार्थी, शोधार्थी के साथ ही समाज के विभिन्न वर्ग एवं विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करने वाले लगभग 200 से अधिक लोग उपस्थित रहे।

*धर्मनिरपेक्षता पर संकट : भारतीय मुसलमानों के लिए चुनाव के बाद की वास्तविकताएँ (आलेख : नदीम खान)*

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