इन सीटाें पर प्रत्याशी का चेहरा देखकर बंधता है सिर पर जीत का सेहरा

रायपुर. छत्तीसगढ़ में इस साल हाेने वाले विधानसभा चुनाव काे लेकर सियासी जंग का आगाज हाे चुका है। भाजपा ने जहां 21 प्रत्याशियों का ऐलान कर दिया है, वहां बची सीटाें पर भी नाम फाइनल हाे गए हैं। इसी के साथ कांग्रेस में भी प्रत्याशियों का चयन अंतिम चरण में हैं। प्रदेश में थाेक में ऐसी सीटें हैं जहां पर प्रत्याशी का चेहरा देखकर ही उनके सिर पर जीत का सेहरा बंधता है। रायपुर संभाग में ही ऐसी एक दर्जन सीटें हैं।
जातिगत समीकरण से परे एक दर्जन सीटें
रायपुर संभाग की 20 विधानसभा सीटों में से एक दर्जन सीटाें पर किसी भी जाति विशेष का बोलबाला नहीं है। यहां पर जाति नहीं बल्कि देहरा देखकर मतों का दान मतदाता करते हैं। यही वजह है राजधानी रायपुर की सभी सीटों पर हमेशा से चेहरा अहम रहा है। इसी के साथ धरसींवा, कसडोल, धमतरी, भाटापारा, राजिम, बलौदाबाजार, कुरूद और बसना की सीटें भी ऐसी हैं जहां पर किसी विशेष वर्ग को लेकर भाजपा और कांग्रेस दांव नहीं खेलती है, क्योंकि इन सीटों पर भी जातिगत समीकरण काम नहीं करते हैं। प्रदेश में इस साल के अंत में विधानसभा के चुनाव होने हैं। प्रत्याशियों के चयन को लेकर भाजपा के साथ कांग्रेस में भी कवायद चल रही है। भाजपा ने तो 21 प्रत्याशियों का ऐलान कर भी दिया है। प्रत्याशियों के चयन को लेकर दोनों पार्टियों में बहुत गंभीरता से काम हो रहा है, क्योंकि प्रदेश की 90 विधानसभा सीटों में ज्यादातर सीटों पर जातिगत समीकरण काम करते हैं। वैसे बहुत सी सीटें ऐसी भी हैं जहां पर जातिगत समीकरण नहीं चलता है। रायपुर संभाग में ही ऐसी एक दर्जन सीटें हैं जहां पर हर वर्ग के विधायक बने हैं।
सबसे पहले बात करें रायपुर की चार सीटों को लेकर तो। छत्तीसगढ़ बनने के बाद यहां पर पहले 2003 के पहले चुनाव में महज दो सीटें रायपुर ग्रामीण और रायपुर शहर की सीट थी। रायपुर ग्रामीण में जहां राज्य बनने के बाद पहली बार जैन समाज के राजेश मूणत जीते, वहीं रायपुर शहर में हमेशा की तरह बृजमोहन अग्रवाल का कब्जा हुआ। 2008 में परिसीमन के बाद दो के स्थान पर चार विधानसभाएं बनीं। ऐसे में रायपुर दक्षिण में अब तक सामान्य वर्ग के बृजमोहन अग्रवाल का ही कब्जा है। रायपुर पश्चिम में दो बार भाजपा के राजेश मूणत जीते। लेकिन पिछले चुनाव में उनको हार का सामना करना पड़ा और विकास उपाध्याय जीत गए। रायपुर उत्तर की बात करें तो यहां से दो बार सिख समाज के कुलदीप जुनेजा और एक बार सिंधी समाज के श्रीचंद सुंदरानी जीते हैं। रायपुर ग्रामीण में ओबीसी वर्ग के मतदाता ज्यादा हैं। ऐसे में यहां पर भाजपा इसी वर्ग के प्रत्याशी पर दांव खेलती है। एक बार यहां से 2008 में नंदे साहू जीते हैं। इसके बाद दो बार से यहां सत्यनारायण शर्मा जीत रहे हैं। वैसे यहां से मप्र के जमाने में सामान्य वर्ग के तरुण चटर्जी और छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद राजेश मूणत जीते हैं।
धरसींवा ओबीसी बहुल पर जीत सामान्य वर्ग की
धरसींवा विधानसभा में कुर्मी और साहू मतदाता ज्यादा हैं। यहां पर छत्तीसगढ़ के अलग राज्य बनने से पहले से ही सामान्य वर्ग का कब्जा रहा है। 1993 में यहां से कुर्मी समाज के बालाराम वर्मा जीते थे। इसके बाद यहां पर 1998 में सामान्य वर्ग के कांग्रेस के विधान मिश्रा जीते। छत्तीसगढ़ अलग होने के बाद 2003 से लेकर 2013 तक लगातार तीन बार गुजराती समाज के देवजी भाई पटेल का कब्जा रहा है। पिछले चुनाव में यहां से कांग्रेस की अनिता याेगेंद्र शर्मा जीती हैं।
एससी मतदाताओं वाली सीट पर सामान्य वर्ग का कब्जा
कसडोल विधानसभा की सीट ऐसी है जहां पर अनुसूचित जाति वर्ग के मतदाता ज्यादा है। इतना सब होने के बाद भी इस सीट पर सामान्य वर्ग का कब्जा रहा है। छत्तीसगढ़ राज्य अलग बनने के बाद लगातार दाे बार यहां से कांग्रेस के राजकमल सिंघानिया जीते। 2013 में भाजपा के गौरीशंकर अग्रवाल जीते लेकिन वे पिछला चुनाव हार गए और यहां कांग्रेस की शकुंतला साहू ने बाजी मारी। पहली बार यहां से ओबीसी की प्रत्याशी जीती हैं।
धमतरी में सामान्य वर्ग का दबदबा
धमतरी विधानसभा में 1952 से लेकर अब तक सामान्य वर्ग का ही दबदबा रहा है। 14 चुनाव में से दो बार ही यहां पर ओबीसी काे जीत मिली है। पहली बार मप्र के जमाने में 1990 में भाजपा के कृपाराम साहू जीते थे, और अब पिछले चुनाव में एक बार फिर भाजपा की ओबीसी प्रत्याशी रंजना साहू जीती थी। छत्तीसगढ़ बनने के बाद 2003 में जैन समाज के भाजपा के इंटर चोपड़ा जीते। 2008 और 2013 में सिख समाज के कांग्रेस के गुरुमुख सिंह होरा जीते।
इन सीटाें पर भी चलता है चेहरा
संभाग की भाटापारा,राजिम, बलाैदा बाजार, कुरूद, बसना की सीटें भी ऐसी हैं जहां पर जाति नहीं बल्कि चेहरा चलता है। भाटापारा में जहां 2003 और 2008 में कांग्रेस के चेतराम साहू जीते, वहीं इसके बाद से दाे बार 2013 और 2018 में भाजपा के शिवरतन शर्मा जीते हैं। राजिम में 2003 में भाजपा के चंदूलाल साहू जीते। लेकिन इसके बाद से यहां पर ब्राह्मण समाज का कब्जा है। 2008 में अमितेष शुक्ल जीते, इसके बाद 2013 में भाजपा के संतोष उपाध्याय और फिर वापस कांग्रेस के अमितेष शुक्ल पिछला चुनाव 2018 में जीते। वैसे यह सीट अमितेष शुक्ल के पिता पंडित श्यामाचरण शुक्ल की रही है। वे यहां से मप्र के जमाने में लगातार जीतते थे। अब बलौदाबाजार की बात करें ताे यहां पर 2003 में कांग्रेस के गणेश शंकर बाजपेयी जीते। 2008 में भाजपा की ओबीसी प्रत्याशी लक्ष्मी बघेल ने बाजी मारी। इसके बाद कांग्रेस के ओबीसी प्रत्याशी जनक राम वर्मा जीते। पिछला चुनाव जाेगी कांग्रेस के प्रमोद शर्मा ने जीता।कुरुद की बात करें ताे यहां पर भाजपा के अजय चंद्राकर का दबदबा है। 2008 काे छाेड़कर वे 2003, 2013 और 2018 में तीन बार जीते है। 2008 में यहां पर कांग्रेस के लेखराम साहू से जीते थे। बसना की बात करें ताे यहां पर 2003 में भाजपा के डा. त्रिविक्रम भाेई जीते। 2008 में कांग्रेस के देवेंद्र बहादुर सिंह, 2013 भाजपा की रूपकुमारी चौधरी जीती। 2018 में फिर से कांग्रेस के देवेंद्र बहादुर सिंह जीते हैं।