पाकिस्तान में भी मोदी दिलाएंगे वोट, नवाज शरीफ क्यों जप रहे दो-दो PM का नाम?

नई दिल्ली . पाकिस्तान की तीन-तीन बार कमान संभाल चुके पूर्व प्रधानमंत्री और पीएमल(एन) के अध्यक्ष नवाज शरीफ ने शनिवार को पार्टी के संसदीय बोर्ड की बैठक को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का नाम लिया। शरीफ ने कहा कि उनके कार्यकाल में भारत के दो-दो प्रधानमंत्री पाकिस्तान आए थे। इतना ही नहीं शरीफ ने तो यहां तक कहा कि उन्होंने कारगिल युद्ध का विरोध किया था, इसीलिए उन्हें पद से हटा दिया गया था।
शरीफ का यह बयान ऐसे वक्त में आया है, जब पाकिस्तान में आम चुनाव होने वाले हैं और वह हाल ही में चार साल के स्वनिर्वासन के बाद वतन लौटे हैं। वतन वापसी के बाद भी शरीफ ने अपने पहले संबोधन में भारत से रिश्ते सुधारने की बात कही थी। यह दूसरा मौका है, जब सार्वजनिक तौर पर शरीफ ने फिर से भारत के साथ रिश्ते सुधारने की वकालत की है। शरीफ ने कहा कि हमें भारत, अफगानिस्तान और ईरान के साथ संबंध बेहतर करने होंगे।
दरअसल, नवाज शरीफ को पता है कि उनके पास यह आखिरी मौका है, जब वह देश की कमान संभाल सकें और आर्थिक मोर्चे से लेकर सियासी मोर्चे पर हिचकोले खा रहे पाकिस्तान को रास्ते पर ला सकें। हालांकि, उनके प्रधानमंत्री बनने का सवाल चुनावों में मिली जीत और लंबित अदालती मामलों के फैसलों पर निर्भर करेगा, जिनमें वह फंसे हुए हैं। पाकिस्तान दशकों के लोकलुभावन अर्थशास्त्र, फिजूलखर्ची और आर्थिक कुप्रबंधन के बीच जकड़ा हुआ है। इसकी जिम्मेदारी से शरीफ का बच पाना नामुमकिन होगा और इस जंजाल से मुक्ति पाने के लिए पड़ोसी देशों से मधुर संबंध होना भी जरूरी है। इसीलिए, नवाज शरीफ अब अपने पार्टी के संभावित सांसदों से इस बात की गुजारिश कर रहे हैं कि उन्हें मिलजुल कर पड़ोसी देशों खासकर भारत से संबंध सुधारने होंगे।
अब जब उनके सबसे बड़े राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी और पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान जेल में बंद हैं, तब उनके सामने देश को बचाने का बीड़ा उठाने का दावा करने का इससे बेहतर और बड़ा मौका नहीं हो सकता है। वह इन बयानों के जरिए पाकिस्तान में बदलते सियासी माहौल और सियासी नैरेटिव को भी सेट करना चाह रहे हैं। पाकिस्तान की राजनीतिक धूरी भारत विरोध पर टिकी रही है। इसमें कश्मीर मुद्दा हमेशा आग में घी डालने का काम करता रहा है लेकिन इस बार ऐसा प्रतीत हो रहा है कि शरीफ बहुत सधे कदमों से ना सिर्फ चुनावी मैदान में बाजी मारना चाह रहे हैं, बल्कि भारत जैसे पड़ोसियों से रिश्ते सुधारने का संकेत देकर वह देश को एक स्थिर और दूरगामी सरकार देने की डगर पर चल रहे हैं।