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भाजपा और संघ की नीतियों पर व्यंग्यात्मक प्रहार: ‘हिंदू जागरण’, पंच-पति विवाद और त्रिपुरा का स्व-विकास मॉडल

ज़ोहेब खान……..रायपुर। राजनीति पर व्यंग्य के तीखे तीर छोड़ने वाले लेखकों ने भाजपा और संघ की नीतियों पर करारा प्रहार किया है। प्रख्यात व्यंग्यकार विष्णु नागर, संपादक राजेंद्र शर्मा और राजनैतिक कार्यकर्ता संजय पराते ने अपनी हास्य-व्यंग्य शैली में भाजपा की राजनीति के विभिन्न पहलुओं की बखिया उधेड़ी है।

तीनों व्यंग्यकारों ने अपने-अपने तरीके से भाजपा और संघ की राजनीति का पोस्टमार्टम किया है। विष्णु नागर ने जहां संघ की ‘हिंदू जागरण’ मुहिम की आलोचना करते हुए उसे विश्राम की सलाह दी है, वहीं राजेंद्र शर्मा ने पंचायती राज में महिलाओं की स्थिति पर करारा व्यंग्य कसा है। दूसरी ओर, संजय पराते ने त्रिपुरा में भाजपा की ‘गारंटी वाली राजनीति’ की धज्जियां उड़ा दी हैं।

https://youtu.be/Q0xYxeHaTlM?si=ZVp_Qmc7ovKAXRzv

हिंदू जागरण की थकान: अब सोने का समय आ गया है! — विष्णु नागर

 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बंगलुरू में होने वाली बैठक में ‘हिंदू जागरण’ पर चर्चा होने जा रही है। व्यंग्यकार विष्णु नागर ने इसे बेहद चुटीले अंदाज में लिया है। उनका कहना है कि पिछले साढ़े दस सालों में हिंदुओं को इतना जगाया गया है कि अब उसे आराम की सख्त जरूरत है।

विष्णु नागर लिखते हैं, “संघ के पदाधिकारियों को हिंदुओं को जगाते-जगाते सौ साल हो चुके हैं। अब उन्हें भी विश्राम करना चाहिए। उन्होंने जितनी सेवा की है, उसके बाद आराम का हक तो बनता ही है। ‘आराम हराम है’ का नारा नेहरू जी ने दिया था, संघ ने नहीं। अब संघ और उसके महामना भी चैन की नींद ले लें, तो देश और उनके स्वास्थ्य के लिए बेहतर होगा।”

उनके मुताबिक, आज के हिंदू की हालत ऐसी हो गई है कि वह बुलडोजर लेकर घूमता है, नमाज़ के दौरान हनुमान चालीसा पढ़ने लगता है और गाय के नाम पर हिंसा मचाता है। नागर का व्यंग्य यह संदेश देता है कि अब संघ को चाहिए कि वह हिंदुओं को सुलाने का आह्वान करे और स्वयं भी विश्राम करे।

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पंच-पतियों की पंचायती सत्ता पर चोट: ‘अर्धांगिनी’ की व्याख्या का नाटक — राजेंद्र शर्मा

 

छत्तीसगढ़ के पारसबाड़ा गांव में महिला पंचों की जगह उनके पतियों द्वारा शपथ लेने की घटना पर संपादक और व्यंग्यकार राजेंद्र शर्मा ने जोरदार प्रहार किया है। उनके अनुसार, यह ‘संस्कारों वाला देश’ नारी की पूजा तो करता है, लेकिन उसे बराबरी का दर्जा देने से कतराता है।

राजेंद्र शर्मा व्यंग्यात्मक रूप से लिखते हैं, “हम बराबरी के पीछे नहीं भागते। हम तो नारी की पूजा करने वाले लोग हैं। स्त्री को पंच बनाकर भी आधा दर्जा ही देते हैं और उसे अर्धांगिनी मानते हैं। पंच-पति सहारा न दें तो पंचायत की गाड़ी रुकी रह जाएगी। यह व्यवस्था ऐसे ही चलती आई है और ऐसे ही चलती रहेगी।”

उन्होंने यह भी कहा कि अगर यह वीडियो वायरल न होता तो कोई हंगामा नहीं होता। पूरा मामला सिर्फ इस बात का है कि पंच-पतियों ने पंचायत की गाड़ी को चलाने का जिम्मा उठा लिया। अब यह भी ‘संस्कारी परंपरा’ का हिस्सा माना जा सकता है!

त्रिपुरा में ‘स्व-विकास’ मॉडल की पोलपट्टी: ‘विकास की गारंटी’ सिर्फ जुमला! — संजय पराते

 

त्रिपुरा में भाजपा शासन के दौरान हुए एक ‘अभूतपूर्व विकास’ की कहानी को व्यंग्यकार और राजनैतिक कार्यकर्ता संजय पराते ने अनोखे अंदाज में पेश किया है। उन्होंने भाजपा के एक मंत्री के भाई के गरीबी से अमीरी तक के सफर को ‘विकास का भाजपाई फॉर्मूला’ करार दिया।

संजय पराते का व्यंग्य है, “भाजपा का इस धरती पर अवतरण समाज और देश के विकास के लिए हुआ है। पर इस विकास के लिए सबसे जरूरी है – स्व-विकास! जो अपना विकास नहीं कर सकते, वो दूसरों का क्या खाकर करेंगे?”

उन्होंने त्रिपुरा में भाजपा की ‘गारंटी वाली राजनीति’ को लेकर तीखे प्रहार किए। उन्होंने बताया कि भाजपा के ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ के नारे के पीछे असल में कॉरपोरेट चंदे की मलाई खाने और अपने अपनों का विकास करने की नीति छुपी है।

पराते ने यह भी कहा कि भाजपा की रैलियां सिर्फ उन्हीं लोगों से भरी होती हैं, जिनका विकास हुआ है या जो चाहते हैं कि उनका भी ऐसा ही विकास हो। उन्होंने मजाक में कहा कि अगर सब इसी रफ्तार से अमीर बनते गए, तो 2,80,000 सालों में हर कोई अंबानी-अडानी बन जाएगा।

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